युवा पोटेशियम ह्यूमिक एसिड एक उच्च गुणवत्ता वाला उत्तेजक और मिट्टी कंडीशनर है। यह पौधों के एंजाइमों की रिहाई को उत्तेजित करता है और वांछनीय खमीर, घोंघे और अन्य सूक्ष्म जीवों के विकास को भी बढ़ाता है। युवा पोटेशियम ह्यूमिक एसिड खानों से प्राप्त एक बहुमुखी खनिज है। इसे आम भाषा में सॉइल कंडिशनर कहा जा सकता है। जो बंजर भूमि को भी उपजाऊ बनाता है। मिट्टी की संरचना में सुधार कर उसे नया जीवन प्रदान करता है।
लाभ
इसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य यह है कि यह मिट्टी को भुरभुरा बनाता है, जिससे जड़ों का विकास अधिक होता है।
यह प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को तेज करता है, जिससे पौधे में हरियाली आती है और शाखाओं का विकास होता है।
यह पौधे की तृतीयक जड़ों का विकास करता है। ताकि जमीन से पोषक तत्वों का अवशोषण बढ़ाया जा सके।
पौधों की चयापचय गतिविधियों को बढ़ाता है और उपज बढ़ाता है।
पौधों में फल और फूल की वृद्धि को बढ़ाता है।
मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।
अनुशंसित फसलें
बुआई के समय तथा खड़ी फसल में 1 किलोग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करें।
मृदा परीक्षण
भारत एक कृषि प्रधान देश है, भारत की 70% आबादी जीविकोपार्जन के लिए कृषि पर निर्भर है। आजादी के बाद जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई है और खाद्यान्न की और भी अधिक कमी हो गई है, जिसके कारण हरित क्रांति …का जन्म हुआ, अनाज के उत्पादन में भारी वृद्धि हुई जिसका मुख्य कारण नई किस्मों का आना, आधुनिक तकनीकों का समायोजन तथा रासायनिक पदार्थों का प्रयोग था, यह देखा गया कि रासायनिक स्त्रोतों का प्रयोग अंधाधुंध होने लगा जिससे पर्यावरण प्रदूषित हुआ तथा भूमि की उर्वरक शक्ति का हनन होने लगा। यह आज तक जारी है जिसका बुरा असर मिट्टी के साथ-साथ सभी जीव-जंतुओं के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है, कृषि में रासायनिक खादों, खरपतवारनाशकों, कीटनाशकों तथा पेस्टीसाइड्स के अत्यधिक प्रयोग से भूमि की विषाक्तता बढ़ गई जिससे अनेक लाभदायक जीवाणु मर गए तथा भूमि मृत अवस्था में तब्दील होने के साथ-साथ अनुपजाऊ भी हो गई, बिना मिट्टी परीक्षण के किसान खेतों में अनावश्यक महंगे रसायनों का प्रयोग कर रहा है जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान भी हो रहा है तथा पैदावार में गिरावट आ रही है, जिस प्रकार मनुष्य एवं पशुओं को संतुलित आहार (पोषक तत्वों) की आवश्यकता होती है उसी प्रकार पौधों को भी पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है तथा ये पोषक तत्व हमें मिट्टी से प्राप्त होते हैं, फसल उत्पादन में मिट्टी एक आवश्यक घटक है जो पौधों को पोषक तत्व प्रदान करती है। अतः यह आवश्यक है कि मिट्टी का स्वास्थ्य अच्छा रहे तथा पौधों को आवश्यक तत्व उपलब्ध होते रहें तथा वह जीवाणुओं की वृद्धि के लिए भी उपयुक्त हो, वैज्ञानिक परीक्षणों से ज्ञात हुआ है कि प्रत्येक पौधे में समुचित वृद्धि के लिए 16 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। मृदा परीक्षण के अभाव में किसान एक ही पोषक तत्व युक्त उर्वरक का लगातार प्रयोग करता है। जो मिट्टी में पहले से ही पर्याप्त मात्रा में होता है, पोषक तत्वों की अधिकता से फसल की पैदावार पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, अतः वर्तमान परिस्थितियों में फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए यह आवश्यक है कि समय-समय पर खेत की मिट्टी की जांच कराई जाए तथा परिणामों के आधार पर संतुलित तरीके से उर्वरकों की अनुशंसित मात्रा का प्रयोग सुनिश्चित किया जाए, ताकि मिट्टी की उर्वरता बनी रहे तथा फलस्वरूप खेती की लागत में कमी आने के साथ-साथ पैदावार में वृद्धि प्राप्त की जा सके।
मृदा परीक्षण के लाभ
पोषक तत्वों की कमी का पता लगाता है।
उपयोग किये जाने वाले पोषक तत्वों की सही मात्रा जानता है।
आवश्यक उर्वरक की उचित मात्रा को जानता है।
खेती की लागत कम है, इससे पैसे की बचत होती है।
उपज बढती है.
मिट्टी स्वस्थ बनी रहती है।
भूजल प्रदूषित नहीं है।
किसानों की आय बढती है।
फसल के स्वास्थ्य में सुधार करता है। मिट्टी के पीएच स्तर का पता लगाता है।
मिट्टी का नमूना कैसे लें
सबसे पहले जमीन से घास को साफ करना होगा।
4 से 5 स्थानों पर लगभग 6 इंच गहरे V आकार के गड्ढे तैयार करें और उनसे मिट्टी के नमूने लें।
4 से 5 स्थानों से ली गई मिट्टी को एक स्थान पर एकत्र कर मिला लें।
अब उस मिट्टी का लगभग आधा किलो (500 ग्राम) मिश्रण नमूना तैयार करें।
यदि नमूने में कंकड़ या घास आदि हो तो उसे साफ करके छाया में कुछ देर सूखने के लिए रख दें। इस मिट्टी के नमूने को साफ कपड़े की थैली में भरकर रखें तथा नमूने के लेबल के अंदर किसान का नाम, किसान के पिता का नाम, खेत का नाम, भू-अभिलेख संख्या, पता, अपना नाम, पिता का नाम, मोबाइल नंबर आदि लिख दें।
मिट्टी के नमूने लेते समय सावधानियां
ऐसी जगह से मिट्टी का नमूना न लें जहां पहले से ही गड्ढा हो।
खेत के अवरोधकों के पास, खेत से लगी सड़क के पास तथा जहां बाड़ लगी है वहां से नमूने न लें।
लेबल और सूचना पर्ची में सभी विवरण भरें।
नमूना देने से 3 से 5 दिन पहले जमीन से नमूना भरें।
सावधान रहें कि गीली मिट्टी के नमूने न दें।
यदि मिट्टी अधिक गीली हो तो उसे 3 से 5 दिन तक छाया में सूखने दें, फिर नमूना दें।
यदि नमूना खड़ी फसल से लेना हो तो पौधों की पंक्तियों के बीच खाली स्थान से मिट्टी का नमूना लें।
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